हड़प्पा सिंधु घाटी सभ्यता नोटस

Harappan civilization in hindi.हड़प्पा सभ्यता एक कांस्य युगीन सभ्यता थी। इस सभ्यता के अवशेष सर्वप्रथम हड़प्पा में मिले और इसका अधिकतर विस्तार सिंधु नदी के किनारे हुआ। इसलिए इसे हड़प्पा सभ्यता या सिंधु सभ्यता भी कहा जाता हैं। यह सभ्यता पूर्णत: एक नगरीय सभ्यता थी।

 

हड़प्पा सभ्यता के बारे में विस्तृत जानकारी तब मिली जब 1921 ने राय बहादुर साहनी ने हड़प्पा में तथा 1922 में राखाल दास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो की खुदाई की (भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक जॉन मार्शल थे)। इस सभ्यता के काल खंड का निर्धारण कार्बन डेटिंग पद्धति (C -14 ) द्वारा 2350 ई0 पू 0 से 1750 ई0 पू0 माना जाता हैं।

पुरातत्व विभाग के जन्मदाता अलेक्जेंडर कनिंघम को माना जाता हैं। जबकि इस विभाग की स्थापना का श्रेय लार्ड कर्जन को जाता हैं।

Harappan civilization in hindi
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नगर नियोजन

 

  • नगर दो भागों में बटा होता था। एक पश्चिमी टीला तथा दूसरा पूर्वी टीला।
  • पश्चिमी टीला ऊंचाई पर होता था तथा इसमें दुर्ग बना होता था और इसमें पुरोहित वर्ग निवास करता था।
  • पूर्वी टीला कम ऊंचाई पर होता था तथा इसमें नगर बसा होता था। इसमें व्यापारी, सैनिक, नागरिक, व शिल्पी वर्ग निवास करता था।
  • धौलावीरा एक मात्र ऐसा नगर था जो तीन भागों में विभक्त था – दुर्ग, मध्य नगर, निचला नगर
  • चन्हूदड़ों एक मात्र ऐसा नगर था जो कि दुर्गीकृत नहीं था।
  • हड़प्पा या सिंधु घाटी सभ्यता की सभी सड़के एक दूसरे को समकोण पर काटती थी। सड़कों के किनारे नालियां बनी होती थी।
  • इस सभ्यता के आवास एक सीधी रेखा में थे।  जिनका द्वार गलियों में या सहायक सड़कों पर खुलता था।
  • ये आवास दो मंजिले तक होते थे जिनमे बीच में आँगन, किनारों पर बहुत सारे कमरे तथा एक स्नानागार होता था।
  • सिंधु घाटी सभ्यता में ईंटों का अनुपात 4 :2 :1  था।

 

कृषि और पशुपालन

  • सिंधु घाटी सभ्यता के लोग  चावल, कपास, रागी, सरसों व बाजरे की खेती से परिचित थे।
चावल लोथल, रंगपुर
बाजरा लोथल
रागी रोजदी( गुजरात)
सरसों कालीबंगा
  • सिंधु घाटी के हल से परिचित थे।  कालीबंगा में हल से जुते खेत के साक्ष्य मिले हैं।
  • सिंधु घाटी सभ्यता के लोग विश्व के प्रथम कपास उत्पादक माने जाते हैं।  इसी लिए मेसोपोटामिया में कपास को सिंधु तथा यूनान में कपास को सिंडन के नाम से जाना जाता है।
  • सिंधुघाटी के लोग हाथी और घोड़े से तो परिचित थे पर वे उन्हें पालतू नहीं बना पाए थे।
  • सिंधु वासियों को भालू, बंदर, खरहा के बारे में भी जानकारी थी जिसकी पुष्टि उनकी ताम्र प्लेटों व मुहरों से भी होती हैं। लेकिन वे शेर के बारे में भी जानते थे इसके बारे में कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं।

 

व्यापार

  • सिंधुघाटी सभ्यता के लोग जल व थल दोनों मार्गों से आसपास के क्षेत्रों से व्यापार करने में निपुण थे। उनका व्यापारिक सम्बन्ध मेसोपोटामिया (वर्तमान इराक) से भी था।
  • वे अफगानिस्तान और ईरान से होते हुए थल मार्ग द्वारा मेसोपोटामिया से व्यापार करते थे।
  • मेसोपोटामिया से जल मार्ग से होने वाले व्यापार में फारस की खाड़ी में बहरीन की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
  • सिंधु घाटी सभ्यता में व्यापार Barter System द्वारा होता था। इस सभ्यता में मुद्रा का प्रचलन नहीं था।
  • व्यापारी अपनी वस्तुओं पर अपनी मोहर लगाते थे।इस प्रकार की मोहर लोथल में मिली हैं।
  • सिंधु घाटी सभ्यता के निवासियों को पोत निर्माण की जानकारीथी।इसके साक्ष्य लोथल और गोड़ीबाड़ा से मिले हैं।
  • 2 पहियों वाली खिलौना गाड़ी(कांसे) मोहनजोदाड़ो
    4 पहियों वालीमिटटीकीगाड़ी चन्हूदड़ों
  • मोहनजोदड़ो से प्राप्त मोहर पर मस्तूल वाली नाव का चित्र बना हैं तथा लोथल से मिटटी की खिलौना नाव मिली है जिससे पता चलता हैं कि वे मस्तूल वाली नाव से बाह्यआंतरिक व्यापार करते थे।
  •  सिंधुघाटी सभ्यता का एक नाम मेलुहा भी था।
  • मेसोपोटामिया के पुरालेखों से दिलमुन और माकन नाम के दो स्थानों का वर्णन मिलता हैं जो मेसोपोटामिया और सिंधु घाटी सभ्यता के बीच के व्यापारिक मार्ग पर पड़ते थे।
  • दिलमुन को  फारस की खाड़ी के बहरीन के नाम से ही जाना जाता हैं।
  • सरगोन के सुमेरियन लेख में दिलमुन को “उगते हुए सूरज का देश” कहा गया गया।
  • सिंधु घाटी सभ्यता में निम्न स्थानों से कच्चा माल आयतित किया जाता था –
  • सामान  क्षेत्रों 
    तांबा  खेतड़ी (राजस्थान ), बलूचिस्तान
    नील रत्न मणि बादक्शा (अफगानिस्तान)
    नील मणि  महाराष्ट्र
    हरित मणि  दक्षिण एशिया
    चांदी  ईरान, अफगानिस्तान
    सोना  अफगानिस्तान, फारस , दक्षिणभारत
    टिन  अफगानिस्तान, ईरान
    लाजवर्द  मेसोपोटामिया, अफगानिस्तान
    शंख व कौड़ी सौराष्ट्र , दक्षिण भारत
    शिलाजीत  हिमालय क्षेत्र
    सीसा  ईरान, अफगानिस्तान, राजस्थान

     

 

धार्मिक विश्वास 

  • हड़प्पा सभ्यता में  मंदिर का कोई प्रमाण नहीं मिलता हैं।
  • मोहनजोदड़ों से मिली एक मोहर पर पशुपतिनाथ की चित्रण मिलता हैं। जिसके चारों और हाथी, बाघ, और गैंडा तथा आसन के पास एक भैंसा बना हुआ है और पैरों के पास दो हिरन हैं।मार्शल ने इन्हें आद्यशिव का नाम दिया।
  • पुरास्थलों से प्राप्त मिटटी की मूर्तियों, मुहरों, पत्थर के लिंग एवं योनियों, मृदभांडों पर चित्रित चिन्हों से यह पता चलता है कि  वे मातृ देवी, पुरुषदेवता( पशुपतिनाथ), लिंग योनि, जल, वृक्ष आदि की पूजा करते थे।
  • सिंधु घाटी सभ्यता में लिंग पूजा का प्रमाण भी मिलता हैं।
  • सिंधुघाटी सभ्यता में पकी मिटटी की स्त्रियों की मूर्तियां भी मिली हैं इसमें एक मूर्ति में तो स्त्री के गर्भ से एक पौधा निकलता हुआ दिखाया गया हैं। सम्भवत : वह उर्वरता की देवी का प्रतीक हैं।
  • सिंधु घाटी सभ्यता में पीपल के पत्ते पर एक देवता का चित्रण भी मिला हैं जिससे प्रतीत होता हैं की वे लोग वृक्षो की भी पूजा करते थे।
  • सिंधुघाटी सभ्यता में एक मोहर पर एक सींग वाले गैंडे (यूनिकॉर्न), तथा कूबड़ वाले सांड की चित्रित मोहरें मिली हैं।
  • सिंधु घाटी सभ्यता में गौ -पूजा का कोई प्रमाण नहीं मिला हैं।
  • सिंधु घाटी की सभ्यता के लोग बुरी आत्माओं से बचने के लिए ताबीज धारण करते थे।
  • सिंधु घाटी की सभ्यता के लोग स्वास्तिक के चिन्ह को पवित्र मानते थे वे इसे सूर्य पूजा का प्रतीक मानते थे।
प्रतीक चिन्ह  महत्व 
युगल शवाधान  सती प्रथा
योगी शिव  योगीश्वर
बैल  शिव का वाहन
बकरा  बलि हेतू
शृंग  शिव का रूप
ताबीज  प्रजनन शक्ति काप्रतीक
भैसा  देवता की शत्रुओं पर विजय
नाग  पूजा शिव
स्वास्तिक  सूर्य की उपासना का प्रतीक

सामाजिक जीवन 

  • सिंधु घाटी की  सभ्यता के अवशेषों में स्त्रियों की बहुत सी मूर्तियां मिली हैं इससे उनका समाज में प्रभाव का पता चलता हैं। सम्भवत: यह सभ्यता मातृसत्तात्मक थी।
  • इस सभ्यता के लोग सूती व ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्रों का प्रयोग करते थे।
  • आभूषणों का प्रयोग भी स्त्री -पुरुष समान रूप से करते थे।
  • ऐसा अनुमान लगाया जाता हैं की यह सभ्यता पुरोहित, व्यापारी, अधिकारी , शिल्पी, और श्रमिकों में विभाजित रहा होगा।
  • सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के मनोरंजन के साधनों में पशुओं की लड़ाई, उनका शिकार, नृत्य और पासे का खेल प्रमुख थे।
  • सिंधु सभ्यता के निवासी शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों थे। उनके भोज्य पदार्थो में गैहू, जौ मटर, तिल, सरसों, खजूर, तरबूज, तथा गाय, बकरी, मछली, घड़ियाल और कछुआ आदि का मांस प्रमुख था।

लिपि 

  • हड़प्पा की लिपि भावचित्रात्मक हैं जिसमें मछली, चिड़ियाँ व अन्य मानवाकृतियां मिलती हैं ;और यह दाई ओर से बाई ओर (जैसे फ़ारसी लिपि)को लिखी जाती हैं।जबकि अन्य भारतीय लिपियाँ बाई ओर के दाई ओर को लिखी जाती है।
  • सिंधु लिपि में कुछ नमूने गोमुत्रिका लिपि (ब्रस्टफिडान) मिले हैं – कालीबंगा से प्राप्त ठीकरों से। इस लिपि में U अक्षर और मछली के चित्रों का सर्वाधिक प्रयोग किया गया है।
  • हड़प्पा लिपि सबसे पहले 1853  में प्रकाश में आई जबकि पूरी लिपि 1923 में प्रकाश में आई थी।
  • इस सभ्यता के अधिकांशत: लेख मुद्राओं (सीलों )पर हैं।  इन सीलों का प्रयोग धनाढ़्य लोग अपनी निजी सम्पति को चिन्हित करने के लिए करते थे।
  • लोथल से हाथी दांत का तथा मोहनजोदड़ों से सीप का बना हुआ एक -एक पैमाना मिला हैं।
  • सिंधु लिपि के बारे में सर्वप्रथम विचार 1873 में अलेक्जेंडर कनिंघम ने रखा था कि इस लिपि का सम्बन्ध ब्राह्मी लिपि  है।
  • सिंधु लिपि को पढ़ने का सबसे पहला प्रयास एल. ए. वैडले ने 1925 में किया था।

अंतिम संस्कार 

सिंधु सभ्यता अंतिम संस्कार की तीन विधियां प्रचलित थी –

  1. पूर्ण समाधिकरण यह विधि मुस्लिम विधि से मिलती हैं।  इसमें शवों को भूमि में दफना दिया जाता हैं।
  2. आंशिक समाधिकरण – इसमें शव को पशु -पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता हैं। उनके खाने के बाद शेष बचे अवयवों को भूमि में दफना दिया जाता हैं। (यह विधि कुछ -कुछ पारसी विधि से मिलती हैं।
  3. दाह संस्कार – इसमें शव को जला दिया जाता है। बाद में बचे उसके अवशेषों को मिटटी एक पात्र में भरकर दफना दिया जाता हैं।  यह विधि सर्वप्रमुख थी। यह विधि हिन्दू विधि से मिलती जुलती हैं।

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