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दोस्तों आप यह तो जानते ही है कि विभिन्न एक दिवसीय प्रतियोगी परीक्षाओं के दृष्टिकोण से History of Ancient India एक महत्वपूर्ण विषय हैं। जिससे काफी संख्या में प्रश्न विगत वर्षों में पूछे जाते रहे हैं। इसीलिए आज की हमारी यह पोस्ट History of Ancient India के एक महत्वपूर्ण topic Gupta dynasty in hindi गुप्त साम्राज्य से लिया गया है जो कि आपको आने वाले सभी प्रकार के Competitive Exams में बहुत काम आयेंगी ! अतः आप सभी से Request है कि आप इस पोस्ट को अपने Browser के BOOKMARK में Save कर लीजिये, और Check करते रहियेगा ! क्योकिं इस पोस्ट को समय – समय update किया जाता रहेगा तथा नए अध्यायों को जोड़ा जायेगा।🙂 🙂
Gupta dynasty in hindi गुप्त साम्राज्य
श्रीगुप्त(240-280 ई.)
- श्रीगुप्त गुप्त वंश का संस्थापक था।
- प्रभावती गुप्त के पूना अभिलेख ताम्र पत्राभिलेख में श्रीगुप्त को आदिराज कहा गया है।
घटोत्कच गुप्त (280-319 ई.)
- यह श्रीगुप्त का पुत्र व उत्तराधिकारी था।
चन्द्रगुप्त प्रथम (319-334 ई.)
- गुप्त वंश का प्रथम प्रतापी राजा था।इसने लिच्छवी की राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया।जिससे सत्ता पर इसकी पकड़ मजबूत हुई।
- चन्द्रगुप्त ने अपने राज्यारोहण के स्मारक के रूप में 319-320 ई. में गुप्त संवत चलाया।
समुद्रगुप्त (335-380 ई.)
- समुद्र गुप्त के बारे में जानकारी हरिसेन द्वारा रचित प्रयाग प्रशस्ति(इलाहबाद स्तम्भ लेख) से प्राप्त होती है।
- हरिसेण शांति एवं युद्ध का मंत्री था।
- समुद्र गुप्त अपनी विजयों के कारण समर शत अर्थात सौ युद्धों का विजेता के नाम से प्रसिद्ध था।
- विन्सेंट स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन की उपाधि दी।
- समुद्रगुप्त ने वन प्रदेश के सभी राजाओं (आटविक) को अपना परिचारक (सेवक) बना लिया था।
- समुद्रगुप्त ने दक्षिणापथ के 12 राजाओं को पराजित कर धर्म विजय का कार्य किया।
- आर्यावत में उसने 9 राजाओं को पराजित कर दिग्विजय का कार्य किया।
- समुद्रगुप्त को कई सिक्को पर वीणा वादन करते हुए दर्शाया गया है।
- ऐरण अभिलेख में समुद्रगुप्त की पत्नी का नाम दत्त देवी वर्णित है।
- समुद्र गुप्त को कई कविताओं का रचियता भी माना जाता है जिससे इसे कविराज भी कहा गया है।
- समुद्र गुप्त ने अश्वमेघ प्राक्रमांक की उपाधि धारण की।
- समुद्रगुप्त की विजयों के बारे में जानकारी स्कंध गुप्त के भितरी अभिलेख से मिलती हैं।इसी अभिलेख से पता चलता है की उसने अश्वमेघ यज्ञ किया था।
- समुद्रगुप्त के काल की छः प्रकार की स्वर्ण मुद्राएँ मिलती है-गरुड, अश्वमेघ, धर्नुधर, व्याघ्रहन्ता, परसु एवं वीणा।
रामगुप्त (335-380 ई.)
- समुद्रगुप्त की मृत्यु के बाद रामगुप्त शासक बना यह एक कमजोर शासक साबित हुआ।
- विशाखदत्त द्वारा रचित देवी चन्द्रगुप्तम के अनुसार वह शकों से बुरी तरह से पराजित हुआ।
- शक राजा रामगुप्त की पत्नी ध्रुव देवी को पाना चाहता था;और रामगुप्त ने उसे देना स्वीकार भी कर लिया था।पर रामगुप्त के छोटे भाई चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य को यह बात पसंद नही आई, उसने स्त्री वेश धारण कर शक राजा का वध कर दिया और उसके बाद रामगुप्त का भी वध कर दिया।
- इस घटना का उल्लेख राजशेखर की काव्य मीमांसा में भी किया गया है।
चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ (380-412 ई.)
- चन्द्रगुप्त द्वितीय समुद्र गुप्त और दत्त देवी का पुत्र था।
- इसने वैवाहिक संबंधो और विजय अभियानों के द्वारा अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन द्वितीय के साथ किया।
- रुद्रसेन द्वितीय की मृत्यु के पश्चात उसका नाबालिक पुत्र उसका उत्तराधिकारी बना और प्रभावती उसकी संरक्षक बनी।
- वाकाटक के सहायता से उसने शकों को पराजित किया और चांदी के सिक्के चलाये।
- शकों पर विजय के उपरांत उसे शाकारी कहा जाने लगा और उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण कर ली।
- उदयगिरी के अभिलेख के अनुसार उसका उद्देश्य सम्पूर्ण पृथ्वी को जीतना था।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय के प्रथम राजधानी पाटलिपुत्र थी। उसने अपनी दूसरी राजधानी उज्जैन में बनाई।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय के उज्जैन दरबार में कालिदास और अमरसिंह जैसे विद्वान् थे।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय ने कालिदास को कुंतल नरेश के दरबार में दूत बनाकर भेजा था
- चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय में ही चीनी यात्री फाह्यान (399-414 ई.) में भारत आया था।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय वैष्णव शाखा का अनुयाई था इसीलिए उसने परमभागवत की उपाधि धारण की।
- महरोली स्तम्भ में राजा चन्द्र का उल्लेख है जिसकी पहिचान चन्द्रगुप्त द्वितीय के रूप में की गई है।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय को साँची के अभिलेख में देवराज तथा प्रवरसेन के अभिलेख में देवगुप्त कहा गया है।
कुमारगुप्त प्रथम (415-455 ई.)
- कुमारगुप्त प्रथम के शासन का वर्णन मंदसौर के अभिलेख से मिलता है।
- कुमारगुप्त प्रथम के अभिलेख सबसे अधिक मिले है -18
- कुमारगुप्त प्रथम ने ही नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की थी जिसे बख्तियार खिलजी द्वारा नष्ट कर दिया गया था।
- तुमुन अभिलेख में कुमार गुप्त को शरदकालीन सूर्य कहा गया है।
- कुमारगुप्त प्रथम ने व्याघ्र-बल पराक्रम, महेंद्रादित्य, अजीत महेंद्र, अश्वमेघ महेंद्र आदि की उपाधियाँ धारण की थी।
स्कन्दगुप्त प्रथम (455-467 ई.)
- जूनागढ़ के अभिलेख से पता चलता है कि गिरनार के प्रशासक (पर्ण दत्त) के पुत्र ने सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार कराया था।
- स्कंदगुप्त का भितरी अभिलेख (गाजीपुर)से हूणों के आक्रमण के बारे में पता चलता है।
- स्कंदगुप्त ने प्रशासनिक सुविधा के लिए अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया।
- कहौम अभिलेख में स्कंदगुप्त को शक्रोपम तथा जूनागढ़ अभिलेख में श्रीपरिक्षिप्तवृक्षा कहा गया है।
- गुप्त वंश का अंतिम शासक विष्णु गुप्त था।
गुप्तकालीन प्रशासन
- गुप्त वंश के शासकों ने प्रांतीय एवं स्थानीय शासन की पद्धति चलाई।
- प्रशासन का विभाजन निम्न प्रकार था। प्रान्त → भुक्तियाँ (उपरिक) →विषयों/ जिले (विषयपति)→ वीथियों → ग्राम
- ग्राम ,प्रशासन की सबसे छोटी इकाई होती थी।
- ग्राम का प्रशासन ग्राम सभा चलाती थी। जिसकी मुखिया ग्रामिक कहलाता था, तथा उसके अन्य सदस्य महत्त कहलाते थे।
- ग्राम समूहों की इकाई को पेठ कहा जाता था।
- ग्राम सभा को पञ्च मण्डली एवं ग्राम जनपद कहा जाता था।
- गोप्त- देश का प्रशासक होता था जिसकी नियुक्ति सम्राट द्वारा की जाती थी।
- सेना का अध्यक्ष सम्राट होता था। उनके वृद्ध होने पर युवराज सेना के अध्यक्षता करता था।
गुप्तकालीन महत्वपूर्ण पदाधिकारी | |
संधि व युद्ध का मंत्री | संधि विग्रहक |
प्रशासनिक अधिकारी/सबसे बड़ा अधिकारी | कुमारामात्य |
राजकीय भोजशाला का अध्यक्ष | खाध्यत्पकिका |
मुख्य न्यायाधीश | महादंडनायक |
पुलिस विभाग का प्रधान | दंडपाशिक |
सैन्य कोष का अधिकारी | बलाधिकृत |
मुख्य द्वारिक | महाप्रतिहार |
गज सेना प्रमुख | महापिलुपति |
अश्व सेना का प्रधान | महाशव्पति/भटाश्वपति |
भूमिकर वसूलने वाला मुख्य अधिकारी | धुर्वधिकरण |
- आय का मुख्य श्रोत भू -राजस्व था| जो कर के रूप में 1/4 से 1/6 भाग तक लिया जाता था।
- भूमिकर संग्रह करने वाला पदाधिकारी ध्रुवाधुकरण या धुर्वधिकरण कहलाता था।
- व्यापारिक कारवां का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति सार्थवाह कहलाता था।
- गुप्त काल में व्यापारियों तथा शिल्पियों के चार संगठन थे –निगम, पुग, गण, श्रेणी
- श्रेणी के प्रधान को ज्येष्ठक कहा जाता था।
- गुप्त काल में उज्जैन व्यापार का प्रमुख केद्र था।
- सिचाई के लिए राहत या घटयंत्र का प्रयोग होता था।
- भूमि सम्बन्धी विवादों का निस्तारण न्यायाधिकरनी नामक अधिकारी करता था।
- भूमि अभिलेखों को सुरक्षित रखने का कार्य करनिक व महापक्षपट्लिक करते थे।
- गुप्त कालीन बंदरगाह
- पूर्वी भारत -ताम्र लिप्त घंट्शाला
- पश्चिमी भारत -भृगुकच्छ (भड़ौच),सोपारा, कल्याण
गुप्तकाल में 5 प्रकार की भूमि का उल्लेख किया गया है|
- कृषि योग्य भूमि –क्षेत्र
- निवास करने या रहने के लिए भूमि – वास्तु भूमि
- पशुओं के चारा के लिए भूमि –चारागाह भूमि
- जो भूमि जोतने योग्य न हो –खिल
- बिना जुटी जंगली भूमि -अप्रहत
गुप्त कालीन शब्दावली | |
भूमि उत्पादन से प्राप्त होने वाला राजा का हिस्सा | भाग |
राजा को उपहार स्वरूप मिलने वाला कर | भोग |
स्थाई कास्तकारों पर लगने वाला कर | उदरंग |
अस्थाई किशानों पर लगने वाला कर | उपरिकर |
नगद (द्रव्य)रूप में दिए जाने वाला कर | हिरन्य |
निशुल्क या बेगार श्रम | विष्टि |
स्वर्ण मुद्राएँ | दीनार |
मंदिरों व ब्रह्मणों को दान दिए जाने वाली भूमि | अग्रहार |
सामाजिक जीवन
- गुप्त काल में भारतीय समाज 4 वर्णों में विभाजित था- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र
- कायस्थ शब्द का उल्लेख सर्व प्रथम याज्ञवल स्मृति तथा गुप्तकालीन अभिलेखों से मिलता है।
- समाज में छुआ छुत प्रचलित थी लेकिन शुद्रो की स्थिति में सुधार आया था।उन्हें रामायण,पुराण,महाभारत सुनने अधिकार प्राप्त हो गया था।
- शूद्रों की पहिचान कृषक के रूप में होने लगी थी।
- गुप्त काल में स्त्रियों की दशा में गिरावट आने लगी थी।केवल निचले दो वर्णों की महिलाओं को ही जीवन-निर्वाह के लिए धन अर्जन करने के अनुमति थी।
- बहु विवाह प्रथा शासक वर्ग में प्रचलित हो गई थी।अधिकतर गुप्त शासकों ने बहु विवाह किये थे।
- समाज में सती प्रथा का भी प्रचलन होने लगा था।
- सती प्रथा का उल्लेख भानुगुप्त के एरण अभिलेख (510 ई.)से मिलता है जिसमें सेनानी गोपराज की पत्नी उसके साथ सती हो गई थी।
- समाज में वैश्यावृति का प्रचलन बढ़ गया था उन्हें गणिका कहा जाता था।
- स्मृतिकार कात्यायन के अनुसार स्त्री अपने स्त्रीधन के साथ अपनी अचल सम्पति भी बेच सकती थी।
धार्मिक जीवन
- गुप्त काल में बौद्ध धर्म को राजाश्रय मिलना बंद हो गया था। उसका स्थान अब भागवत धर्म ने ले लिया था
- गुप्त शासक वैष्णव मत के अनुयायी थे।
- गुप्त काल में त्रिमूर्ति(ब्रम्हा, विष्णु, महेश) की पूजा प्रारंभ हो गई थी।
- गुप्त काल में मूर्ति पूजा ब्रह्मनीय धर्म का सामान्य लक्षण हो गई थी।
- गुप्त वंश का राजकीय चिन्ह विष्णु वाहन गरुण था; जो चन्द्रगुप्त-2 एवं समुद्रगुप्त के सिक्कों पर पाया जाता था।
- गुप्त वंश का वैष्णव धर्म का सबसे महत्वपूर्ण अवशेष देवगढ़(झाँसी) का दशावतार मंदिर है।
- गंगधर अभिलेख में विष्णु को मधुसुदन कहा गया है।
- गुप्त युग में मथुरा और बल्लभी में जैन सभाओं का आयोजन हुआ था।
गुप्त काल में वैज्ञानिक प्रगति
- गुप्तकाल में आर्य भट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मागुप्त, भास्कर जैसे प्रसिद्ध गणितिज्ञ थे।
- आर्य भट्ट ने अपनी पुस्तक आर्यभट्टीय में पृथ्वी को गोल बताया और उसकी परिधि का सही अनुमान लगाया।
- आर्यभट्ट की अन्य रचनाएँ दशागीतिक सूत्र, आर्याषट्क थी।
- आर्यभट्ट ने आर्यभट्टीय में दशमलव प्रणाली का वर्णन किया आर्यभट्टीय में किया।
- ब्रह्मागुप्त ने ब्रह्मासिद्धांत की रचना की थी।
- वराहमिहिर ने अपने ग्रन्थ पंच सिन्द्धातिका में पांच प्राचीन सिद्धांतो पैतामह,रोमक पोलिश,वशिष्ट तथा सूर्य का निरूपण किया।
- भास्कर ने तीन ग्रंथो की रचना की महा भास्कर्य, लघु भास्कर और भाष्य।
- लाट देव को सूर्य सिद्धांत गुरु कहा जाता है।
- सुश्रुत ने आर्युवेदिक चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण अनुसन्धान किये।
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