प्रागैतिहासिक काल का इतिहास

प्रागैतिहासिक काल Prehistoric period of india

अतीत काल की घटनाओं की जानकारी देने वाले शास्त्र को ही हम इतिहास कहते हैं। प्राचीन भारत के इतिहास को समझने एवं सुविधा के आधार पर इतिहासकारों ने इसे तीन भागों में बाटा हैं –

  1. प्रागैतिहासिक काल :- जिस काल के बारे में कोई लिखित प्रमाण नही मिलता।
  2. आद्य -ऐतिहासिक काल:- इस काल में लेखन कला तो थी पर लेख पढ़े नही जा सके।
  3. ऐतिहासिक काल:जिस काल के लिखित प्रमाण भी हैं और उन्हें पढ़ा भी जा सकता हैं।
 

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प्रागैतिहासिक काल

प्रागैतिहासिक काल का इतिहास वह काल हैं जिसके बारे में कोई लिखित सामग्री उपलब्ध नहीं हैं। इस काल के बारे में जानकारी मुख्य रूप से पुरातात्विक श्रोतों से प्राप्त होती हैं।

मानव के विकास के आधार पर मानव सभ्यता दो भागों में विभक्त की जा सकती हैं – 1. पाषाण काल ।  2. धातु काल

पाषाण काल

मानव विकास के शुरुआत में मानव और पशुओं में अंतर नहीं था। मानव को हिंसक पशुओं से अपनी रक्षा करने और भोजन की तलाश करने के लिए पशुओं का शिकार करने के लिए हथियारों और औजारों की आवश्यता पड़ी। ये हथियार और औजार प्रारंभ में तो पत्थर के थे बाद में मानव ने धातु की खोज के बाद धातुओं के बनाने शुरू कर दिए। 

इन औजारों और हथियारों की बनावट, प्रकार और तकनीक के विकास के आधार पर  तीन भागों में बांटा गया।

1. पुरा पाषाण काल (Palaeolithic Period)– 5,00,000 ई0 पू0 से 50,000  ई0 पू0  आखेटक एवं खाद्य संग्राहक 
2. मध्य पाषाण काल (Mesolithic Period)-50,000 ई0 पू0 से 7 ,000  ई0 पू0  आखेटक एवं पशु पालक 
3. उच्च या नव पाषाण काल (Neolithic Period) -7,000 ई0 पू0 से 25 00  ई0 पू0  स्थाई निवास एवं अन्न उत्पादक 


1. पुरा पाषाण काल (Palaeolithic Period)– 5,00,000 ई0 पू0 से 50,000  ई0 पू0 
(आखेटक एवं खाद्य संग्राहक) 

साधारणत: 50000 से 8000 ई 0 पू 0 तक के काल को  पुरा पाषाण काल माना जाता है, जिसको मानव विकास के क्रम के आधार पर को तीन भागों में विभक्त किया जाता हैं –

  • पूर्व -पुरा पाषाण काल – 5,00,000 ई0 पू0 से 50,000  ई0 पू0
  • मध्य- पुरापाषाण काल- 50,000 ई0 पू0 से 40,000  ई0 पू0
  • उत्तर – पुरा पाषाण काल – 40,000 ई0 पू0 से 10,000  ई0 पू0

पूर्व -पुरा पाषाण काल: 

  • 5,00,000 ई0 पू0 से 50,000  ई0 पू0 तक माना जाता। 
  • पूर्व -पाषाण काल में मानव ने आग की खोज कर ली थी। परन्तु इसका प्रयोग करना नहीं जानता था। 
  • इस काल में मानव मूलतः क़्वार्टजाइट पत्थर का प्रयोग करता था। इस काल के प्रमाण सबसे पहले सोहन नदी घाटी में मिले। इसलिए इसे सोहन संस्कृति भी कहा जाता हैं। वर्तमान में यह स्थान पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में हैं।  
  • इस काल में मिलने वाले प्रमुख उपकरण हैंड –एक्स(कुल्हाड़ी या हस्त कुठार) , विदारणी (क्लीवर) और गंडासा (खंदक) थे। 
  • पत्थर को तोड़कर व घिसकर बनाई गई हस्तकुठार मद्रास के अतिरमपक्कम व बादमदुराई से प्राप्त हुए ; जिससे इसे मद्रास संस्कृति भी कहते हैं। 

मध्य- पुरापाषाण काल:

  • 50,000 ई0 पू0 से 40,000  ई0 पू0 तक माना जाता।
  • इस काल में क़्वार्टजाइट पत्थरों  के स्थान पर जैस्पर, चर्ट, फ़िलेंट के पत्थरों का प्रयोग होने लगा था। 
  • इस काल में पत्थर के शल्कों से निर्मित विभिन्न आकार के फलक –बेधनी, छेदनी और खुरचनी का प्रयोग होने लगा था। 
  • इस काल म फलकों के अधिक प्रयोग होने से इसे फलक संस्कृति भी कहते हैं। 
  • इस युग का शिल्प कौशल नर्मदा नदी, तुंगभद्रा की घाटी में भी पाया जाता हैं।  

उत्तर – पुरा पाषाण काल :

  • इसका काल 40,000 ई0 पू0 से 10,000  ई0 पू0 तक माना जाता।
  • इस युग में जलवायु अपेक्षाकृत गर्म होने के कारण हिम युग अंतिम अवस्था आरम्भ हो गई थी। इस युग में आधुनिक मानव (होमो सेपियंस ) का आविर्भाव हुआ। 
  • इस काल में चकमक पत्थरों का प्रयोग होना शुरू हो गया था। 

2 .मध्य पाषाण काल (Mesolithic Period) – 50,000 ई0 पू0 से 7 ,000  ई0 पू0 

(आखेटक एवं पशु पालक)

  • इस काल की जानकारी  सी0 एल0 कार्लाइज ने विंध्य क्षेत्र में लघु पाषाण औजारों  के मिलने पर हुई थी।  
  • मध्य पाषाण काल में मानव ने पशुपालन शुरू कर दिया था। जिसके प्रथम साक्ष्य आमदगढ़ (होशंगाबाद, मध्य प्रदेश) से प्राप्त होते हैं। 
  • इस काल में मानव ने मछली का शिकार करना सीख लिया था। 

प्रमुख औजार:

  • इस काल के औजार पुरा पाषाण काल की तुलना में काफी छोटे हो गए थे। जिसके कारण इन्हे माइक्रोलिपिक या सूक्ष्म पाषाण भी कहा जाता था। 
  • सर्व प्रथम तीर कमान का अविष्कार भी इसी काल में हुआ था। 
  • इनके प्रमुख औजार लकड़ी या हड्डियों के हत्थे लगे हँसिये थे।  
  • उत्तर प्रदेश के महदहा (प्रतापगढ़) से बहुत बड़ी मात्रा में हड्डी व सींग से निर्मित उपकरण मिले है। 

प्रमुख स्थल: 

  • मध्य प्रदेश सी पंचमढ़ी से 2 शैलाश्रय मिले हैं जिनके नाम जम्बू द्वीप एवं डेरोथीद्वीप हैं।  

3 .उच्च या नव पाषाण काल (Neolithic Period) -7,000 ई0 पू0 से 25 00  ई0 पू0 

(स्थाई निवास एवं अन्न उत्पादक)

नवपाषाण काल में मानव ने स्थाई घर बनाकर रहना शुरू कर दिया था। इनके घर मिटटी और सरकंडो के बने हुए होते थे।  जो आकार में गोलाकार या आयताकार होते थे। इस काल में मानव ने कृषि कार्य करना प्रारंभ कर दिया था। इस कार्य के लिए वे नुकीले पाषाण डंडो और कुदालों का प्रयोग करते थे। इस काल के मानव सबसे पुराने कृषक समुदाय माने जाते हैं।  

  • नव पाषाण कालीन प्राचीनतम बस्ती बलूचिस्तान के मेहरगढ़ से मिली हैं। यही से ही यही से कृषि के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं। ये लोग गेंहू, जौ और रुई उपजाते थे; जबकि इलाहबाद के पास कोल्डिहवा से चावल उगाने के साक्ष्य मिले हैं। 
  • नव पाषाण काल का मानव कृषि कार्य के अतरिक्त पशुपालन भी करता था. वह मुख्य रूप से गाय, बैल, भेड़ एवं बकरी पालते थे। 
  • 1860 ई0 पू0 में ले मेसुरियर ने उस काल का प्रथम उपकरण उत्तर-प्रदेश की लैंस नदी घाटी से प्राप्त किया था। 
  •  चूँकि मानव ने स्थाई रूप से रहना और अन्न उगाना सीख लिया था तो उसे अन्न को रखने तथा पकाने के लिए बर्तनों की आवश्यता हुई। जिससे मृदभांड का निर्माण शुरू किया गया जो कि पहले वे हाथ से बनाते थे बाद में बर्तनो को बनाने के लिए चाक का प्रयोग करने लगे। कुम्भकारी इसी काल की देन हैं। 
  • इस काल में मानव ने पहिये का अविष्कार कर लिया था।
  • इस काल में ही मनुष्य में स्थाई निवास की प्रवृति उत्पन्न हुई।
  • इस काल में ही पहिये का आविष्कार मानव द्वारा किया गया।
  • कृषि का अविष्कार भी नव पाषाण काल में हुआ। सबसे प्राचीन फसल गेहूँ और जौ थी जबकि मानव द्वारा प्रयुक्त पहला अनाज चावल था।
  • कृषि का प्रथम उदाहरण मेहरगढ़ से प्राप्त हुआ जो की पश्चिमी बलूचिस्तान में हैं।
  • चावल का प्रथम साक्ष्य कोल्डीहवा से प्राप्त हुए।
  • इस काल में ही मनुष्य ने सबसे पहले कुत्ते को पालतू बनाया।
  • बुर्जहोम (कश्मीर) से प्राप्त कब्रों से पता चलता है कि पालतू कुत्तो मो मालिक के साथ दफनाया जाता था। परन्तु यह प्रथा भारत के किसी अन्य नवपाषाण युगीन स्थान से प्राप्त नहीं हुई। 
  • चिरांद (बिहार) से इस काल के हड्डी के उपकरण प्राप्त हुए।  जिनमें प्रमुख रूप में हिरण के सींगो का प्रयोग किया गया। 

औजार:
नवपाषाण काल के लोग पॉलिशदार पाषाण हथियारों का प्रयोग करते थे जिनमें विशेषकर कुल्हड़ियां होती थी। भारत के लिंग सुगुर (कर्नाटक) से 1842 ई0 में डॉ0 प्राइमरोज ने भारत की प्रथम पॉलिशदार कुल्हाड़ी की खोज की थी।   


अन्य स्मरणीय तथ्य

  • राबर्ट ब्रूस फुट पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने 1863 ई. में भारत में पुरापाषाण कालीन औजारों की खोज की।
  • असम के स्वेतभ्रू गिबन भारत में पाए जाने वाला एक मात्र कपि हैं।
  • भारत में जीवाश्म का प्रमाण शिवालिक की पहाडियों से मिला हैं।
  • भारत में मनुष्य सम्बन्धी सबसे पहला प्रमाण नर्मदा घाटी से मिला हैं।
  • भारत का सबसे प्राचीन नगर मोहन जोदड़ो था, सिन्धी भाषा में जिसका अर्थ मृतकों का टीला।
  • प्रथम भारतीय पुरा पाषाण कलाकृति की खोज पल्लावरम नामक स्थान पर हुई।

अभ्यास करें : प्रागैतिहासिक काल MCQ प्रश्न

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