शवाधान विधियां

शवाधान विधियां

ताम्र पाषाण काल में विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न शवाधान विधियां मिलती हैं। 

आंशिक शवाधान:

इस प्रकार के शवाधान में मृतक को एक स्थान पर खुला रख दिया जाता था। पशु-पक्षियों द्वारा  मांस का भक्षण कर लेने के बाद जो हड्डियां शेष रह जाती थी। उन्हें चुनकर कब्र में रख दिया जाता था। इस प्रकार का शवाधान अक्सर वयस्कों का किया जाता था। 

पूर्ण शवाधान:

इस प्रकार का  शवाधान में अधिकांशत: शवों का सिर पूर्व दिशा में तथा पैर पश्चिम की ओर करके दफनाया जाता था। मृतक बच्चे को प्रायः पूर्ण रूप से बड़े -बड़े घड़ों (कलशों) में भरकर दफनाया जाता था। जिसे कलश शवाधान कहा जाता था। 

  • कलश शवाधान के साक्ष्य तमिलनाडु के चिंगलपट्टू क्षेत्र से मिले हैं। 
  • नागर्जुनीकोंडा, मस्की, आदिच्चनल्लुर से पूर्ण शवाधान के उदाहरण मिले हैं। 
  • महाराष्ट्र में कुछ ऐसे शवाधान के उदाहरण मिले हैं। जिनमें शव को एक बड़े कलश में रख उत्तर- दक्षिण दिशा में रखकर अपने घरों के फर्श में दफनाते थे। 
  • पश्चिमी महाराष्ट्र के चंदोली वह नेवासा से बच्चों के शवाधान के ऐसे उदाहरण मिले हैं। जिनमें की बच्चों के गले में तांबे के मनके का पहनाकर  दफनाया गया था। 

ताम्र पाषाण काल में शवाधान करते समय सबके साथ मिट्टी के बर्तनअन्य उपकरण रखने की प्रथा थी, जोकि शव के साथ या उसकी  कब्र के बाहर रख दिया जाते  थे। अंत्येष्टि सामग्री रखने के पीछे उनका विश्वास था कि यह सामग्री परलोक में मृत आत्मा के काम आएगी। 

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